Wednesday, May 13, 2020

In Srimad Bhagvadgita-Krishna Says-

श्रीकृष्ण कहते हैं - श्रेष्ठ पुरुष जो जो आचरण व्यवहार मैं लाते हैं अन्य मानव समाज भी वैसे ही आचरण का अनुसरण करने लगते हैं।  वह श्रेष्ठ पुरुष जो कुछ आचरण सम्बन्धी आदर्श प्रस्तुत कर देता है , समस्त संसार भी उसी का अनुसरण करने लगता है। 

विशेष :- मानव की प्रकृति है अपनों से बड़ो के व्यवहार को देखना।  यहाँ श्रीकृष्ण अर्जुन को उस समय ये अहसास दिला रहे हैं जब अर्जुन डिप्रेसन में आकर युद्ध करने से इंकार कर देता है।  अर्जुन सांसारिक मोह के कारन डिप्रेसन में आ गया था। ये श्लोक हमें इस बात को समझाता हैं की जब हमारे अंदर भय हो या मोह हो या फिर किसी वास्तु पाने की भयंकर इच्छा जागृत हो जाये तो हमारे अंदर असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो जाती है और हम हताशा,निराशा के अन्धकार में डूब जाते हैं।  ध्यान रखने वाली बातें ----1 अपना चरित्र और व्यवहार उच्च कोटि का रखना         चाहिए।2 अनासक्ति भाव से कर्म निरंतर करते रहना चाहिए।  



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