TIME MANAGEMENT PART-I समय प्रबन्धन
या
प्रबन्धन में समय प्रभाव-भाग -1
आज संचार ने मानव जीवन में सदक्रांति और विप्लव के साथ ही असत्य मेधावी होने की गलतफेमि का रोग भी उसके मष्तिष्क में रोप दिया है जिसके कारण आज हरेक इंसान एक अज्ञात परेशानी की गिरफ्त में आया हुआ है।
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प्रबन्धन में समय प्रभाव-भाग -1
मित्रों, मैं समय प्रबंधन पर विस्तृत चर्चा करूँगा। आज के लेख में मोटे -मोटे रूप में हम धरातलीय स्तर पर शाब्दिक और व्यवहारिक स्तरों पर ही शायद बात कर पाएं लेकिन इस विषय पर मुझे जितनी भी कड़ियों में अपनी बात रखनी होगी मैं मुकम्मल तौर पर विषय को उपसंहार तक पहुंचाऊंगा।
स्कूल,कॉलेज,विश्वविद्यालय या संस्थान में समय प्रबंधन को भौतिक और प्रायोगिक तौर पर सीखने, समझने का एक भेड़ चाल नमूना देखने को मिलता है। विशेषकर प्रबंधन संस्थाओं में तो यह मुख्य विषय होता ही है किन्तु फिर भी क्या विद्यार्थी वास्तव में समय प्रबंधन से साक्षात्कार कर पाते हैं ? मैं समझता हूँ प्रबंधन की बात तो छोड़िये अगर सिर्फ हम समय के स्वरुप को पचास प्रतिशत भी जान लें तो मानव और मानव समाज में बहुत बड़ा क्रान्तिकारी परिवर्तन आ जायेगा। हम मात्र कागजी घोड़े दौड़ते रहते हैं।
हम विकल्प विहीनता की स्थिति में अल्पकालिक समय के लिए समय के साथ कदम ताल करने का नाटक करते हैं।
आपके सामने दो महत्वपूर्ण लेकिन चिर परिचित शब्द आये हैं जिनको आप बचपन से सुनते और पढ़ते आ रहे हैं। आज हम यहाँ इन शब्दों को पढ़ने वाले नहीं हैं और ना ही इन शब्दों से सम्बंधित समतुल्य अन्य शब्दों को पढ़ेंगे। एक लम्बे समय से हम इस प्रकार के चरित्रवाले शब्दों को ख़ूब पढ़ते आ रहे हैं ।
प्यारे विद्यार्थियों और नौजवान साथियों !!
आज हम विशेषकर इन दोनों शब्दों को समझेंगे, इनकी नब्ज को बारीकी से टटोलेंगे और इनका तापमान नापने,जांचने का सफल प्रयास करेंगें।
एक शब्द है -समय।
और दूसरा शब्द है -प्रबन्धन।
मैं आपसे बड़ा स्वाभाविक सा प्रश्न पूछता हूँ ,हो सकता है आपको मेरा प्रश्न मूर्खतापूर्ण लगे लेकिन जो भी आप अनुभव करें मेरी मासूम जिज्ञासा है इसी कारण आप मुझे बतायें कि क्या अदृश्य का प्रबंधन किया जा सकता है ? समय तो अदृश्य है। आप समय का प्रबन्धन कर ही नहीं सकते।
मैं पूर्व में दो वाक्य कह चुका हूँ -
समय अपनी गति से चलता है।
इन्सान अपनी मति से चलता है।
यहाँ इंसान को अपनी मति का समन्वय या विलयीकरण समय की गति में करना होगा। गति के साथ चलने का पूरा अभ्यास करना होगा नहीं तो समय इन्सान को पटक देगा जैसे घोड़ा एक अप्रशिक्षित घुड़ सवार को अपनी पीठ से नीचे गिरा देता है।
मेरे प्यारे मित्रों !!! सफल वही होता है जो बड़ी कुशलता पूर्वक एक सक्षम,ग्यानी घुड़सवार बन कर समय रूपी अश्व की पीठ पर बैठ कर लम्बा रास्ता तय करने की कुशलता पा लेता है।
दो प्रकार की अवस्था होती है -दृश्य और अदृश्य। यानि भौतिक और अलौकिक। इसे बहुत ही मोटे तौर पर देखते हैं- क्योंकि इन दोनों को जानना और समझना बड़ा ही दुर्लभ काम है, कारण - जिसके लिए हमें आध्यात्मिक पक्ष में जाना होगा। यहाँ हमारा वह विषय ही नहीं है। अतः हम केवल समय और प्रबंधन के परिप्रेक्ष्य में देखते हैं तो ज्ञात होता है की जो भी वस्तु या सामग्री हमे दिखाई देती है वह सब भौतिक है और जो हमें दिखाई नहीं देती लेकिन उसकी उपस्थिति का अहसास निरंतर होता रहता है - वह अलौकिक है।अब इसका समय और प्रबन्धन के सन्दर्भ में विवेचन करते हैं --
समय अदृश्य है। जो दिखाई दे , जिसे हम छू सकते हों या प्राप्त कर सकते हों , तो हम उसकोआसानी से व्यवस्थित कर सकते हैं किन्तु समय तो दिखाई नहीं देता फिर हम समय का प्रबंधन कैसे करें ?
अब आप को समझ में आ गया होगा की मानव का और समय का तालमेल आखिर क्यों नहीं बैठता ? इन्सान में इतनी खुदगर्जी और बेसुमार अहंकार भरा होता है की बिना लालच, बिना मज़बूरी वह दिखने वाली चीजों को ही विस्मृत करते हुए न तो देखता है और न ही उनको महत्व देता है, अनुसरण करना तो बहुत दूरकी कोड़ी है।
समय अपनी गति से चलता है और इन्सान अपनी मति से चलता है। अधिकतर इंसानों की फितरत होती है कि वह समय की गति के बारे में ध्यान ही नहीं देता। समय उस बोतल में बंद जिन्न की तरह है, यदि, आपने उसे साध लिया तो वह आपको भरपूर लाभ देगा और यदि आपने उस पर ध्यान नहीं दिया तो वह आपको बर्बाद कर देगा। महाभारत के सीरियल तो आपने देखे ही होंगे। स्मरण कीजिये, प्रारम्भ में ही आपको सुनाई देता था-मैं समय हूँ। सन्देश यही दिया जा रहा है की जिसने समय की शक्ति को नहीं जाना, समय ने उसका नामों-निशाँ मिटा दिया। जब आप समय की प्रभाविक शक्ति के साथ रामायण या महाभारत कालीन घटनाओं की समीक्षा , मूल्याङ्कन और प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करते हैं तो प्रत्येक काल में घटित बड़ी छोटी महत्वपूर्ण घटनाओं का केवल एक ही आधार कारण परिणाम स्वरुप प्राप्त होता है कि--
या तो, वह व्यक्ति परास्त हुआ जिसने मूर्खतावश समय चक्र को देखने की आवश्यकता महसूस ही नहीं की।
या तो, वह व्यक्ति परास्त हुआ जिसने समय की मांग को या कहिये समय के बहु आयामी व्यक्तित्व को नहीं समझा।
या फिर, वह व्यक्ति परास्त हुआ जिसने स्वयं को समय से भी बड़ा स्वम्भू मान लिया।
या तो ,वो इंसान जिसने समय से साथ लोलुपता भरा व्यवहार किया यानि जब समय की जरूरत हुई समय के साथ चल दिया, और जब आवश्यकता नहीं हुई समय को ठोकर मार दी।
चूँकि अदृश्य होने के कारण समय का ऐसा खतरनाक आक्रमण होता है की इन्सान चारों खाने चित हो जाता है। फिर उसके पास पश्चताप के अलावा कुछ भी शेष नहीं रहता।
कहानी का निचोड़ ये ही निकलता है कि--
आइये हम सक्ष्म स्तर पर सबसे पहले तो ये जाने की जिसे समय कहा जा रहा है वास्तव में वह है क्या ?
क्या उसका कोई वास्तविक रंग,रूप,आकार -प्रकार भी है या नहीं ?
समय से साथ कैसे चला जाये ?अथवा समय को सबसे अच्छा दोस्त कैसे बनाया जाये ताकि वह हर मुसीबत में हमेसा हमारा साथ देने के लिए तत्पर रहे।
समय अपनी गति से चलता है।
इन्सान अपनी मति से चलता है।