प्रिय नौजवानों और विद्यार्थीओ बहुत लम्बे समय से आप सभी की ये डिमांड थी कि मैं आप युवाओं को आपके कॅरिअर ,आपके व्यक्तित्व विकास और मानसिक समृद्धि ,चिंतन प्रक्रिया के आलावा सफलता के मूल सूत्र बताऊँ ताकि आजके इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा के युग में मेधावी युवा वर्ग हतासा , निराशा,असफलता का सीकर न होने पाए। मुझे उम्मीद है कि आप मेरे मार्गदर्शन से लाभान्वित हो पाएंगे। आप लोग मुझसे फोन पर भी बात कर सकते हैं ,
मेरा कॉन्टेक्ट नंबर है
94 600 700 95
डॉ कृष्ण बीर सिंह चौहान।
मैं प्रारम्भ -श्रीमद्भगवद गीता- से करूँगा ,,,,,,,,,,,,,,,,
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देखिये,गीता का नाम आते ही हमारे जेहन में यह आ जाती है की गीता हिन्दुओं का एक पवित्र ग्रन्थ है जो संस्कृत भाषा में लिखा हुआ है ,फिल्मों में शपथ दिलाते समय इस ग्रन्थ का प्रयोग किया जाता है या फिर कोई वृद्ध व्यक्ति मृत्यु के समीप होता है तो पंडितजी उस वृद्ध के कानों में दो चार श्लोक फूँक देते हैं।
मित्रों ! गीता एक ऐसा महान ग्रन्थ है जिसमे मानव और मानव जीवन से सम्बंधित समस्त समस्याओं का निवारण और उत्तर उपलब्ध है। विडंबना ये है की इस ग्रन्थ की कोई चर्चा करना पसंद ही नहीं करता। इसका प्रमुख कारन है गीता सद्कर्म ,
निष्पाप जीवन और स्वयं को पहचानने की बात करती है।
इंसान हरेक काम फल या परिणाम या निजी लाभ के आधार पर करता है जबकि गीता कहती है तुम्हे फलरहित चाहत के साथ पूरी ईमानदारी के साथ सर्व हिताये भावना से कर्म करना चाहिए। कर्म का फल तो अनिवार्य रूप से स्वतः ही मिलेगा। जिस प्रकार बीज में फल समाहित रहता है ठीक उसी भांति मानव कर्म में कर्म फल समाहित रहता है।
प्यारे विद्यार्थिओं ! आप वर्ष भर पढाई पर ध्यान नहीं देते , जब परीक्षा आती हैं तो आप कुंजिओं,पासबुक, वन वीक सीरीज या फिर परीक्षा में नक़ल करने के लिए छोटी छोटी पर्चियां बनाते हैं। अगर आप पूरी निष्ठां से,पुरे धैर्य के साथ शुद्ध कर्म समझ कर शिक्षा को पढाई को अपनी पूजा ,ईश वंदना समझकर नियमित अध्ययन कर्म करते रहें तो आप बड़ी आसानी से उच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण हो सकते हैं। फिर बताइये डिप्रेसन आपको क्यों सताएगा ?
बड़ो का यह दायित्व बन जाता है की वे अपने आचरण ,व्यवहार को श्रेष्ट रखें , विशेषकर कॉलेज में प्रोफेसर ,स्कूल में अध्यापक,घर में समस्त अग्रज आदि। जो छोटे या अनुज होते हैं वो अपने से बड़ो को बड़ी गौर से देखते हैं और फॉलो करते हैं।
इस विषय में गीता के तीसरे अध्याय के श्लोक नंबर इक्कीस में स्वयं श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं,,,,,,,,,,,,
यद्यदाचरति श्रेष्ठसतत्तदेवतरो जनः
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।
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