कबीर कहता है
रहना नहीं देश विराना है
ये संसार कागद की पुड़िया बून्द पड़े घुल जाना है ,
ये संसार झाड़ और झकड़ आग लगे बरि जाना है।
अब सांसारिक लोग अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु नित नए संबंधों का सृजन मात्र इसलिए करते है कि हमें समय पर सब भौतिक साधन मिलते चले जाएँ ,वो चाहे मानवीय सहायता हो या फिर आर्थिक सहयोग।
हम रिश्ते बनाते वक्त एक बेहतर इन्सान के बजाय आर्थिक व बाहुबली संपन्न व्यक्ति को चुनते है। जीवन भर गोल गोल कोल्हू के बैल की तरह घूमते रहते है। स्वार्थ पूर्ति हेतु समस्त प्रकार के अपराध करने से भी नहीं झिझकते। फिर एक दिन जब उसी व्यक्ति को दूध की मक्खी की तरह निकाल कर बाहर फेंक दिया जाता है तो उसे अहसास होता है और उनके नेत्रों से नो नो आंसू बहने लगते है।
देखने में आया है की व्यक्ति अपने पुत्र के विवाह करने से पूर्व भिखारी का स्वरुप धारण कर लेता है। वह ये मानसिकता बना लेता है की बेटी के पिता को जितना लूट सकते हो उतना लूट लेना चाहिए। तुर्रा ये की लड़की संस्कारित शिक्षित और ब्यूटीफुल चाहिए। पुत्र में चाहे अवगुणों की खान समाहित क्यों न हो।
होता क्या है ? शादी के बाद सास को अपनी सत्ता छिनती हुयी दिखाई देने लगती है। और शुरू होता है भारतीय एपिसोड।
जूतमपैजार का सिलसिला शुरू हो जाता है।
विवाह विच्छेद के बेतहासा परिणाम सामने आने लगे हैं।
अगर व्यक्ति सामान्य इंसान बनकर अपने नैसर्गिक रिश्तों का सम्मान करते हुए जीवन जिए तो वह आखरी क्षण तक मुस्करा सकता है।
सोचिये हम किस विकास की ओर जा रहे हैं ?
Thursday, March 24, 2022
सब कुछ है फिर भी जीवन उदास क्यों है ?
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